Friday 8 May 2020

गुरु बिना मोक्ष नही

गुरू बिन मोक्ष नहीं


प्रश्न :- क्या गुरू के बिना भक्ति नहीं कर सकते?
उत्तर :- भक्ति कर सकते हैं, परन्तु व्यर्थ प्रयत्न रहेगा।

प्रश्न :- कारण बताऐं?
उत्तर :- परमात्मा का विधान है जो सूक्ष्मवेद में कहा है :-

कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान।
         गुरू बिन दोंनो निष्फल है, पूछो वेद पुराण।।
कबीर, राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरू कीन्ह।
          तीन लोक के वे धनी, गुरू आगे आधीन।। 
कबीर, राम कृष्ण बड़े तिन्हूं पुर राजा।
          तिन गुरू बन्द कीन्ह निज काजा।।
भावार्थ :- गुरू धारण किए बिना यदि नाम जाप की माला फिराते हैं और दान देते हैं, वे दोनों व्यर्थ हैं। यदि आप जी को संदेह हो तो अपने वेदों तथा पुराणों में प्रमाण देखें।

श्रीमद् भगवत गीता चारों वेदों का सारांश है। गीता अध्याय 2 श्लोक 7 में अर्जुन ने कहा कि हे श्री कृष्ण! मैं आपका शिष्य हूँ, आपकी शरण में हूँ।
गीता अध्याय 4 श्लोक 3 में श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके काल ब्रह्म ने अर्जुन से कहा कि तू मेरा भक्त है। पुराणों में प्रमाण है कि श्री रामचन्द्र जी ने ऋषि वशिष्ठ जी से नाम दीक्षा ली थी और अपने घर व राज-काज में गुरू वशिष्ठ जी की आज्ञा
लेकर कार्य करते थे। श्री कृष्ण जी ने ऋषि संदीपनि जी से अक्षर ज्ञान प्राप्त किया तथा श्री कृष्ण जी के आध्यात्मिक गुरू श्री दुर्वासा ऋषि जी थे।
कबीर परमेश्वर जी हमें समझाना चाहते हैं कि आप जी श्री राम तथा श्री कृष्ण जी से तो किसी को बड़ा अर्थात् समर्थ नहीं मानते हो। वे तीन लोक के मालिक थे, उन्होंने भी गुरू बनाकर अपनी भक्ति की, मानव जीवन सार्थक किया।
इससे सहज में ज्ञान हो जाना चाहिए कि अन्य व्यक्ति यदि गुरू के बिना भक्ति करता है तो कितना सही है? अर्थात् व्यर्थ है।

गीता अध्याय 15 श्लोक 1-4 मे कहा है की जो उल्टे लटके हुए संसार रूपी वृक्ष को पत्तो सहित वेदो के अनुसार बता देगा, वही तत्वदर्शी संत होगा। उसके द्वारा बताई गई भक्ति साधना ही करनी चाहिए तभी मोक्ष होगा।

वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी ही पूर्ण तत्त्वदर्शी संत है। जिन्होंने उल्टे लटके हुए संसार रूपी वृक्ष को भी वेदो के अनुसार सही से बताया है।

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